Thursday, December 3, 2015
Tuesday, October 27, 2015
स्पेस एक्स
अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र की ओर निजी कंपनी की प्रथम उड़ान : स्पेस एक्स
In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, वैज्ञानिक
12 Votes
22 मई 2012, 7:44 UTC पर एक नया इतिहास रचा गया। पहली बार अंतरिक्ष मे एक निजी कंपनी का राकेट प्रक्षेपित किया गया। स्पेस एक्स का राकेट फाल्कन 9 अंतरिक्ष मे अपने साथ ड्रेगन कैपसूल को लेकर अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र की ओर रवाना हो गया। इससे पहले की सभी अंतरिक्ष उड़ाने विभिन्न देशो की सरकारी कंपनीयों जैसे नासा, इसरो, रासकास्मोस द्वारा ही की गयी है।
यह एक अच्छी खबर है। यह स्पेस एक्स का दूसरा प्रयास था, कुछ दिनो पहले राकेट के एक वाल्व मे परेशानी आने के कारण प्रक्षेपण को स्थगित करना पढा़ था।
यह प्रक्षेपण सफल रहा, कोई तकनिकी समस्या नही आयी। राकेट के कक्षा मे पहुंचने के बाद ड्रेगन यान राकेट से सफलता से अलग हो गया और उसने अपने सौर पैनलो फैला दिया। यह इस अभियान मे एक मील का पत्त्थर था। जब यह कार्य संपन्न हुआ तब स्पेस एक्स की टीम के सद्स्यो की उल्लासपूर्ण चित्कार इसके सीधे वेबकास्ट मे स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती थी।
आप इस वेबकास्ट को यहां पर देख सकते है। इस अभियान के मुख्य बिंदू इस वीडीयो मे 44:30 मिनिट पर जब मुख्य इंजिन का प्रज्वलन खत्म हुआ, 47:30 मिनिट पर जब दूसरे चरण का ज्वलन प्रारंभ हुआ, तथा 54:00 मिनिट पर ड्रेगन कैपसूल का अलग होना है। डैगन कैपसूल के सौर पैनलो का फैलना 56:20 मिनिट पर है।
इस विडीयो को ध्यान से देखिये और 56:20 मिनिट पर डैगन कैपसूल के सौर पैनलो का फैलते समय स्पेस एक्स टीम के आनंद मे सम्मिलित होईये।
यह प्रक्षेपण महत्वपूर्ण क्यों है ? क्योंकि पहली बार किसी निजी कंपनी द्वारा अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से एक कैपसूल जोड़ने का प्रयास है। वर्तमान मे नासा के पास अंतरिक्ष मे मानव भेजने की क्षमता नही है, स्पेस एक्स की योजना के तहत वह 2015 तक मानव अभियान के लिये सक्षम हो जायेगा। यदि यह अभियान सफल रहता है तब अनेक निजी कंपनीया अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर आपूर्ति की दौड़ मे आगे आगे आयेंगी। स्पर्धा से किमतें कम होती है, जब अन्य राष्ट्र अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र के बजट मे कटौती कर रहे हो, यह एक बड़ी राहत लेकर आया है। इससे अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र की आयू मे बढोत्तरी होगी और अंतरिक्ष मे मानव की स्थायी उपस्थिति की संभावना बढ़ जायेगी।
अंतरिक्ष अभियानो मे यह एक नये दौर की शुरुवात है। शुक्रवार 25 मई को ड्रैगन कैपसूल अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र से जुड़ने का प्रयास करेगा। इस केपसुल मे अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र के लिये रसद और उपकरण हैं।
स्पेस एक्स और उसके वैज्ञानिको को बधाई!
Thursday, October 8, 2015
रामचंद्र गुहा
रामचंद्र गुहा
जब मुझे ट्विटर से पता चला कि भारत के वित्त मंत्री ने लेखकों पर हमला करते हुए एक ब्लॉग लिखा है तो मैं हैरत में पड़ गया. गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स अभी अधर में है, भारत में कई जगह किसान सूखे की मार झेल रहे हैं, भारत की आर्थिक नीति से जुड़े कई अहम मुद्दों पर बहस चल रही ऐसे वक़्त में भारत के वित्त मंत्री अपना समय और ऊर्जा हम जैसे लेखक मात्र लोगों पर ख़र्च कर रहे हैं?
फिर मैंने ख़ुद अरुण जेटली का ब्लॉग पढ़ा और मेरी हैरत और बढ़ गयी. मैं उनसे कभी मिला तो नहीं लेकिन उनके बारे में जो सुना या सार्वजनिक जीवन में देखा है उसके आधार पर वो मुझे वो समझदार और धीरमति वाले आदमी लगते थे. लेकिन उनके इस हमले में बदमिज़ाजी झलक रही है.कहीं कहीं तो वो ख़ास लोगों को निशाना बनाते नज़र आए हैं.
वित्त मंत्री ने दावा किया है कि अपने साथी लेखकों की हत्या का लेखकों द्वारा किया जाने वाला विरोध 'कारखाने में तैयार विद्रोह' है और ये 'भाजपा के प्रति वैचारिक असिहुष्णता का एक उदाहरण है.'
वित्त मंत्री के अनुसार ये लेखक कांग्रेस या वामपंथी पार्टियों के हाथों की कठपुतली हैं और ये लोग पुरस्कार लौटाकर 'अपरोक्ष रूप से राजनीति' कर रहे हैं.
वित्त मंत्री का बयान इन लेखकों के व्यक्तिव और बुद्धिमत्ता का अपमान सरीखा है. साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की शुरुआत कर्नाटक से हुई, जहाँ कांग्रेस सरकार प्रसिद्ध विद्वान एमएम कलबुर्गी की हत्या रोकने में विफल रही. सरकार कलबुर्गी के क़ातिलों को पकड़ने में भी अब तक सफल नहीं हुई है. इसके विरोध में स्थानीय लेखकों ने कर्नाटक का राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया. एक कन्नड़ लेखक ने अपने बयान में कहा, “ऐस बदले हुए राजनीतिक माहौल में जहाँ कट्टरपंथियों के सामने केंद्र और राज्य सरकारें मूक बनी हुई हैं, लेखक, तर्कवादी और बुद्धिजीवी भय में जी रहे हैं.”
उसके बाद उदय प्रकाश और नयनतारा सहगल ने अपने (केंद्रीय) साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाये. इन लेखकों के इस फ़ैसले की मिली सराहना और मीडिया कवरेज ने दूसरे लेखकों को भी केंद्र और राज्य के अकादमी पुरस्कार लौटाने के लिए प्रेरित किया. लेखकों के फ़ैसले स्वप्रेरित थे. ये'कारखाने में तैयार' विद्रोह नहीं है, न ही इसके पीछे कोई संगठित कैंपेन है. लेखकों ने अपने फ़ैसले निजी तौर पर लिए हैं.
अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में एमएम कलबुर्गी और नरेंद्र दाभोलकर का जिक्र किया है लेकिन वो गोविन्द पानसरे का नाम लेना भूल गए हैं. मैं मान लेता हूँ कि ये महज संयोग है. बहरहाल, ये विरोध कांग्रेसी साजिश का परिणाम है ये बात इस तथ्य से खारिज हो जाती है कि ये विरोध कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक में शुरू हुए. हो सकता है कि कांग्रेस इन विरोधों का इस्तेमाल करने की कोशिश करे लेकिन लेखक भी आम आदमी की तरह विभिन्न राजनीतिक विचारों से जुड़े होते हैं या फिर किसी राजनीति से कोई वास्ता नहीं रखते.
जिन लेखकों ने पुरस्कार लौटाए हैं उनमें से कई को मैं जानता हूँ. उनमें से कई लम्बे समय से कांग्रेस के कटु आलोचक रहे हैं. जेटली ने दावा किया है कि ये सभी लेखक 'पुरानी सत्ता से संरक्षण प्राप्त' थे लेकिन सच्चाई इसके उलट है. इनमें से ज़्यादातर लेखक लुटियन दिल्ली से दूर भारत के सुदूर क़स्बों में बेहत सामान्य घरों में अनियमित आय के साथ जीवन गुजारते हैं. ऐसे लेखकों पर'करियरवादी' होने का आरोप लगाना सरासर नाइंसाफ़ी है.
ये सम्भव है कि इनमें से कुछ लेखकों के व्यवहार में लोगों को फांक दिखे. जब 1989 में राजीव गांधी ने सलमान रश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' पर प्रतिबंध लगा दिया था तब उदारवादी बुद्धिजीवी धर्मा कुमार ने लिखा था, “सेकुलर भारत में ईशनिंदा संज्ञेय अपराध नहीं हो सकता, भारत के राष्ट्रपति किसी या सभी धर्मों के रक्षक नहीं हैं.”
ये दुखद था कि तब बहुत से लेखक रश्दी की किताब पर प्रतिबन्ध लगाने के दूरगामी परिणाम का अंदाजा नहीं लगा सके.
अभी हाल ही में जब पश्चिम बंगाल की तात्कालिक लेफ़्ट फ्रंट की सरकार ने तसलीमा नसरीन की किताब पर प्रतिबन्ध लगा दिया, उन्हें राज्य से बेदखल कर दिया तब बहुत ही कम उदारवादी बुद्धिजीवियों(वामपंथियों ने तो और भी कम) ने इस फ़ैसले का सार्वजनिक विरोध किया. इन विफलताओं ने दक्षिणपंथी भाषणबाज़ों के लिए जगह बना दी. उसके बाद से ही वो देश के अलग अलग हिस्सों में लेखकों और कलाकारों को धमकाते रहे हैं.
इसी साल जनवरी में मैंने द टेलिग्राफ़ अख़बार में एक लेख (अ फ़िफ्टी फ़िफ्टी डेमोक्रेसी) लिखा था जिसमें मैंने तर्क दिया था कि 'बोलने की आज़ादी' पर ख़तरा भारत के लिए नयी बात नहीं है. इस ख़तरे के स्रोत अलग अलग रहे हैं, जैसे अंग्रेजों के ज़माने के कोलोनियल क़ानून, न्यायपालिका की कमजोरी, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, नेताओं की कायरता, प्रकाशकों और मीडिया संस्थानों की मिलीभगत. नयी चीज़ ये हो रही है कि अब लेखकों की चुन चुन कर हत्या की जा रही है. पहले किताबों पर बैन लगता था, कला प्रदर्शियों में तोड़फोड़ की जाती थी, फ़िल्मों को सेंसर किया जाता था. अब लेखकों की बस अपने विचार सामने रखने के लिए हत्या की जा रही है.
जब महाराष्ट्र में दाभोलकर की हत्या हुई तो केंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी. जब कलबुर्गी की कर्नाटक में हत्या हुई तो केंद्र में भाजपा और राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. दोनों हत्याओं में कॉमन बात ये है कि दोनों लेखकों के पीछे हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी समूह लम्बे से पड़े हुए थे. इन हत्याओं के बाद भारत बांग्लादेश का प्रतिरूप लगने लगा है जहाँ हाल ही में कई आज़ाद ख़्याल ब्लॉगर इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथों मारे जा चुके हैं.
लेखकों का वर्तमान विरोध इन जघन्य हत्याओं के ख़िलाफ़ है. ध्यान देने की बात है कि जिन लेखकों ने पुरस्कार नहीं लौटाए हैं वो भी भारतीय समाज में बढ़ती असिहुष्णता की मुखर आलोचना करते रहे हैं. ये असिहष्णुता केवल लेखकों केख़िलाफ़ नहीं बढ़ी है, बल्कि आम लोगों के ख़िलाफ़ भी बढ़ी है.
उम्मीद के अनुरूप ही जेटली ने अपने ब्लॉग में पहले की सरकारों के तानाशाही रवैये पर सवाल उठाया है. उन्होंने पूछा है, "इनमें से कितने लेखकों ने इमरजेंसी के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी दी, विरोध प्रदर्शन किये या अपनी आवाज़ उठायी?”
जेटली के सवाल के चार अलग अलग जवाब हैं जो शायद आपस में जुड़े हुए भी हैं.
एक, इनमें से कुछ लेखकों का जन्म ही इमरजेंसी के बाद हुआ था.
दो, इनमें से कुछ लेखकों ने इमरजेंसी का साहसपूर्वक विरोध किया था और उसका ख़मियाजा भी भोगा था. (जेटली को ज़रूर पता होगा कि नयनतारा सहगल ने इंदिरा गांधी की तानाशाही मुखर आलोचना की थी और वो जयप्रकाश नारायण की पत्रिका एवरीमैन में इंदिरा शासन के ख़िलाफ़ लगातार लिखती रही थीं. उन्हें सबक सिखाने के लिए इंदिरा गांधी ने उनके पति को प्रताड़ित किया था.)
तीन, जिनके मंत्रिमण्डल में जगमोहन और मेनका गांधी जैसे लोग हों उन्हें इमरजेंसी के विरोध का दम्भ नहीं भरना चाहिए.
चार, क्योंकि जेटली ख़ुद इमरजेंसी की ज़्यादतियों के शिकार रहे हैं इसलिए उन्हें उन लोगों से सहानुभूति रखनी चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए जो 'बोलने की आज़ादी' और संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ उठा रहे हैं.
पिछले हफ़्ते मैं बैंगलोर के कुछ युवा अकादमिकों से मिला था. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मेरे परिवार वालों को इस बात से डर लगता है कि मैं भाजपा, कांग्रेस और तमाम भारतीय प्रधानमंत्रियों की खुली आलोचना करता हूँ. मैंने उन्हें जवाब दिया कि कई बार उन्हें डर लगता है लेकिन सच्चाई ये है कि इस देश में अंग्रेजी में लिखने वाले लेखकों पर उतना ख़तरा नहीं होता जितना की भारतीय भाषाओं में लिखने वाले लेखकों को होता है.
ये महज संयोग नहीं है कि दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी अपनी अपनी मातृभाषाओं में लिखते थे. ये भी महज संयोग नहीं है कि पुरस्कार लौटाने वाले ज़्यादातर लेखक अंग्रेजी लेखक नहीं हैं.पंजाबी और हिन्दी के ये कवि, मलयालम और कन्नड़ के उपन्यासकार शायद जेटली जैसों के राडार से बाहर हैं. लेकिन इन लेखकों को वो हत्यारे और नाख़ुश लोग जानते हैं और उन्हें निशाना बनाते हैं जो (अफ़सोस अक्सर) व्यापक संघ परिवार से कोई न कोई नाता होने का दावा करते हैं, जिस परिवार के जेटली भी एक सदस्य हैं.
रामचंद्र गुहा बैंगलोर स्थित इतिहासकार हैं. उनकी हालिया किताबें 'गाँधी बिफ़ोर इंडिया' और 'इंडिया ऑफ्टर गाँधी' चर्चित रही हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से साभार. मूल अंग्रेजी लेख यहाँ पढ़ें. अनुवाद: रंगनाथ सिंह.
Thursday, September 10, 2015
भौतिकी से जुड़ी कुछ सामान्य भ्रांतियाँ
भौतिकी से जुड़ी कुछ सामान्य भ्रांतियाँ
कुछ नया सीखने मे सबसे बड़ी बाधा रहती है हमारे द्वारा पहले से सीखा हुआ (अ)ज्ञान! जिस भरे हुये पात्र मे कुछ और नही भरा जा सकता, उस तरह से कुछ नया सीखने के लिये कभी कभी पहले से सीखा हुआ भुलाने की आवश्यकता होती है।
भौतिकी से जुड़ी कुछ भ्रांतियाँ हमारे मस्तिष्क मे कुछ ऐसे बैठी हुयी है कि हमे कुछ नया सीखने से पहले उन्हे भूलना पड़ता है। आइये देखते है, ऐसी ही कुछ भ्रांतियाँ।
1. हर गतिशील वस्तु अंततः रूक जाती है। विरामावस्था सभी पिंडो की प्राकृतिक अवस्था है।
सभी भौतिकी भ्रांतियोँ मे यह सबसे बड़ी और सामान्य भ्रांति है। महान दार्शनिक अरस्तु ने भी अपने गति के नियमो मे भी इसे शामिल किया था। अब हम जानते है कि न्युटन के प्रथम गति के नियम के अनुसार यह गलत है। न्युटन के गति के प्रथम नियम के अनुसार :
प्रत्येक पिंड तब तक अपनी “विरामावस्था” अथवा “सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था” में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।
इसमे प्रथम अवस्था ’विरामावस्था’ स्पष्ट है और हम इसे हमेशा हर जगह देखते रहते है, लेकिन द्वितिय अवस्था ’गतिशील’ अवस्था थोड़ी जटिल हो जाती है। यह जटिलता हमारे गति को रोकने वाले से संबधित एक महत्वपूर्ण कारक को ना समझने से आती है। यह कारक है घर्षण बल। घर्षण बल ऐसे एक दूसरे के संपर्क मे स्थित दो पिंडो के मध्य उत्पन्न होता है, यह बल गतिशील पिंड की गति की विपरित दिशा मे कार्य करता है जिससे गति कम होती है और अंतत: शून्य हो जाती है। जब हम किसी गेंद को फ़र्श पर लुढ़काते है तब वह गेंद फ़र्श और गेंद के मध्य के घर्षण बल के फलस्वरूप अंतत: विरामावस्था मे आती है।
2. निरंतर गति के लिये निरंतर बल की आवश्यकता होती है।

3. किसी भी वस्तु को धकेलना उसके ’भार’ के कारण कठिन होता है।
एक सीमा तक यह भ्रांति शब्दो के गलत प्रयोग के कारण है। इस भ्रांति के कारण को हम रोजाना अपने आसपास देखते भी है। किसी भी वस्तु को धकेलना कठिन होता है लेकिन यह कठिनता उसके भार के कारण नही, उसके “जड़त्व या द्रव्यमान” के कारण होती है। जड़त्व किसी भी वस्तु के द्वारा अपनी अवस्था मे परिवर्तन के लिये उत्पन्न प्रतिरोध को कहा जाता है।
भार किसी भी वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्पन्न त्वरण को कहा जाता है।
भार किसी भी वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्पन्न त्वरण को कहा जाता है।
4. ग्रह तारे की परिक्रमा गुरुत्व के कारण करते है।
हम जानते है कि गुरुत्व चारो मूलभूत बलों मे सबसे कमजोर बल है तथा यह आकर्षण बल है। ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने के पीछे कारण यह है कि वे एक ऐसे बादल से उत्पन्न हुये है जो घूम रहा था। बादल का केंद्र सूर्य बन गया और बादल के बाह्य हिस्से विभिन्न ग्रह बन गये। ये ग्रह आज भी उसी केंद्र की परिक्रमा कर रहे है। यह कोणिय संवेग के संरक्षण के नियम (Law of conservation of anugular momentum) के अनुसार है।गुरुत्वाकर्षण तो केवल उस कक्षा को बनाये रखने मे मदद कर रहा है। गुरुत्वाकर्षण ग्रहो कि सूर्य की परिक्रमा मे एक संतुलन बनाये हुये है, लेकिन वह ग्रहो को उसकी कक्षा मे धकेल नही रहा है।
5. भारी वस्तु हल्की वस्तु की तुलना मे तेज गति से गीरती है।
इस भ्रांति को काफ़ी पहले ही गैलिलीयो ने गलत सिद्ध कर दिया था, उन्होने पीसा के मीनार से दो भिन्न भिन्न द्रव्यमान की वस्तु को गीरा कर देखा था कि वे समान गति से नीचे गीरी थी।
यह भ्रांति भी घर्षण बल को नही समझने के कारण उत्पन्न होती है। इस उदाहरण मे यह वायु से उत्पन्न घर्षण बल है। सभी पिंड वायु से गुजरते है तथा सभी गिरते हुये पिंड वायु घर्षण का अनुभव करते है। वायु घर्षण बल गति की दिशा मे पिंड की सतह के अनुपात मे होता है। सामान्यतः यह बल नगण्य होता है लेकिन हल्की वस्तुओं जैसे पंख के इसका प्रभाव अधिक होता है। इस प्रयोग को चंद्रमा पर किया गया था, चंद्रमा पर पंख और हतौड़े को गिराकर प्रयोग किया गया था, दोनो समान समय मे सतह पर पहुंचे थे।
6. अंतरिक्ष मे गुरुत्वाकर्षण नही है।
अंतरिक्ष मे भी गुरुत्वाकर्षण है, लेकिन वह पृथ्वी की तुलना मे कमजोर है। अंतरिक्ष मे अंतरिक्षयात्री गुरुत्वाकर्षण महसूस नही करते क्योंकि वे गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से निरंतर गीर(freefall) रहे होते है। सभी चंद्रमा, उपग्रह तथा ग्रह निरंतर स्थिर गति से गीर रहे होते है।
7.ग्रह सूर्य की परिक्रमा वृत्ताकार कक्षा मे करते है।
ग्रह सूर्य की परिक्रमा दिर्घवृत्ताकार कक्षा मे करते है, सूर्य दिर्घवृत्त के दो केंद्रो मे से एक केंद्र पर है। यह केप्लर के ग्रहिय गति के तीन नियमो से प्रथम है।
इससे जुड़ी एक और भ्रांति भी यह है कि मौसम इस दिर्घवृत्ताकार कक्षा के कारण बदलते है। लेकिन सच यह है कि उत्तरी गोलार्ध मे गर्मी उस समय होती है जब पृथ्वी सूर्य से दूर होती है और सर्दीयाँ सूर्य से निकटस्थ स्थिति मे। मौसम मे बदलाव पृथ्वी के अक्ष के झुके होने से होता है।[ इस पर विस्तार से किसी अन्य लेख मे]।
इससे जुड़ी एक और भ्रांति भी यह है कि मौसम इस दिर्घवृत्ताकार कक्षा के कारण बदलते है। लेकिन सच यह है कि उत्तरी गोलार्ध मे गर्मी उस समय होती है जब पृथ्वी सूर्य से दूर होती है और सर्दीयाँ सूर्य से निकटस्थ स्थिति मे। मौसम मे बदलाव पृथ्वी के अक्ष के झुके होने से होता है।[ इस पर विस्तार से किसी अन्य लेख मे]।
8.गुरुत्वाकर्षण दो द्रव्यमान रखने वाले पिंडो के मध्य का आकर्षण बल है।

न्युटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के परिपेक्ष्य मे गुरुत्वाकर्षण का प्रकाश पर प्रभाव नही होना चाहिये क्योंकि उसका कोई द्रव्यमान नही होता है। लेकिन आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश पर भी गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़्ना चाहिये। इसे सर आर्थर एडींगटन के एक प्रयोग द्वारा प्रमाणित भी कर दिया गया। उन्होने खगोल सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के पीछे तारो को देखा था, इन तारो से आने वाला प्रकाश सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से वक्र हो रहा था जिससे वे सूर्य के पीछे अपनी वास्तविक स्थान की बजाय सूर्य के बाजू मे दिखायी दे रहे थे। इन तारो की वास्तविक स्थिति तथा निरीक्षित स्थिति के मध्य अंतर सामान्य सापेक्षतावाद के समीकरणो के अनुरूप था।
न्युटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत अब भी स्कूलो के पाठ्यक्रम है क्योंकि वह आसान है। यह सिद्धांत केवल अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्रो मे या अत्याधिक कम दूरी पर गलत होता है जैसे बुध तथा उसकी सूर्य की परिक्रमा की कक्षा। बुध की कक्षा को न्युटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से नही आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षतावाद सिद्धांत से समझा जा सकता है।
9.इलेक्ट्रान की नाभिक की परिक्रमा ग्रहो द्वारा सूर्य की परिक्रमा के जैसे है।
इलेक्ट्रान परमाणु के कवच(खोल) के रूप मे रहते है। उनकी वास्तविक स्थिति ज्ञात नही की जा सकती है यह हाइजेन्बर्ग की अनिश्चितता के सिद्धांत के अनुसार है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी इलेक्ट्रान की वास्तविक स्थिति तथा गति ज्ञात नही की जा सकती है। नील्स बोह्र का माडेल जिसमे इलेक्ट्रान को परमाणु नाभिक के इर्दगिर्द अलग अलग कक्षाओं मे दिखाया जाता है, इस नियम का उल्लंघन करता है और सही नही है।
आशा है कि इस लेख से आपकी कुछ भ्रांतिया दूर हुयी होंगी।
20 PPT RELATED TO SOCIAL SCIENCE
20 PPT RELATED TO SOCIAL SCIENCE: દરિયાકિનારાની જમીનનું ધોવાણ (સ્લાઈડ શો) વાતાવરણમાં થતાં ફેરફાર જીવસૃષ્ટિ પર કઈ રીતે અસર કરે છે ? ધરતીકંપ (સ્લાઈડ શો) પૃથ્વીની સંરચના...
Wednesday, August 12, 2015
Thursday, July 30, 2015
ઈ-પુસ્તકાલય
: 1. ભાગવત ગીતા
2. ભગવદ્ગોમંડલ
3. ગુજરાતની લોકસાંસ્કૃતિક વિરાસત
4. મહાત્મા ગાંધી, ભાગ-૧
5. મહાત્મા ગાંધી, ભાગ-૨
* સરળ રોગ...
2. ભગવદ્ગોમંડલ
3. ગુજરાતની લોકસાંસ્કૃતિક વિરાસત
4. મહાત્મા ગાંધી, ભાગ-૧
5. મહાત્મા ગાંધી, ભાગ-૨
* સરળ રોગ...
Wednesday, July 22, 2015
Friday, July 17, 2015
Saturday, July 11, 2015
KISHOR PARMAR: GUNOTSAV-5 NA STUDENTS NA MARKS KAI RITE SHODHVA ?...
KISHOR PARMAR: GUNOTSAV-5 NA STUDENTS NA MARKS KAI RITE SHODHVA ?...: ��GUNOTSAV-5 NA STUDENTS NA MARKS KEM SHODHVA?? www.kjparmar.in ��1. www.gunotsav.org ma jaav ��2. Menu ma officer corner ma jaav ��3. T...
Friday, July 10, 2015
Friday, July 3, 2015
ICT Learning Environment for Teachers: DownLoad Articles
ICT Learning Environment for Teachers: DownLoad Articles: Click on the Articles To Download PDF File Dr. Navneet Rathod Being Digital Facilitator ICT in Education in India Star Board Softwar...
EDUCATIONAL FUTUROLOGY: OpenSourceSoftware
EDUCATIONAL FUTUROLOGY: OpenSourceSoftware: E- LEARNING SOFTWARE: MOODLE Moodle: Modular Object Oriented Dynamic Learning Environment Moodle is Learning Management System (LM...
EDUCATIONAL FUTUROLOGY: DigitalEducation
EDUCATIONAL FUTUROLOGY: DigitalEducation: Digital School-1 M. K. Techno Science School-Talaja (Rampara Road) WI-Fi School Education through Smart Classroom in Std.8 th t...
EDUCATIONAL FUTUROLOGY: Educational Change Pattern
EDUCATIONAL FUTUROLOGY: Educational Change Pattern: Educational Change Pattern Transformation of Education (With reference to Technology) Change is permanent. Points Cha...
Wednesday, July 1, 2015
Friday, June 26, 2015
Math = Love: Prime Factorization using the Birthday Cake Method...
Math = Love: Prime Factorization using the Birthday Cake Method...: Before I became a teacher, I sometimes battled fears that teaching could be boring. After all, once you've mastered high school math, t...
Math = Love: Free Downloads
Math = Love: Free Downloads: Free Printable Posters For Your Classroom Bulletin Board Ideas This blog page started out as an attempt to organize all of the foldabl...
Wednesday, June 17, 2015
Friday, June 12, 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)